नमस्ते ! (NAMASTE)
यह मेरा सबसे पहला ब्लॉग है तो इसकी शुरुआत भी ‘शुरू’ से ही होनी चाहिए | इसीलिए आज का विषय है ‘नमस्ते’ क्योंकि हम भारतीय, किसी भी सज्जन व्यक्ति को मिलते समय सबसे पहले उसे अक्सर नमस्ते ही करते हैं |
लेकिन उससे भी पहले जरा इस ब्लॉग के नाम और काम को समझा दूं | ‘रूट्स एंड बेयोंड्स’ (ROOTS
& BEYONDS) हर
उस घटना, विषय, हालात, या किसी भी प्रकार के असामाजिक कारणों के जड़ तक जाने का प्रयास करेगा और फिर उसके अंत के पार से उसका हल खोज लायेगा (या लाने का प्रयास रहेगा) |
तो हमारे विषय ‘नमस्ते’ (Namaste)
के अर्थ को आप बड़ी ही आसानी से इंटरनेट पर खोज सकते है | इसे ‘नमस्कार’ (Namaskar)
या ‘प्रणाम’ (Pranam)
भी कह सकते है, जिनका मतलब आपस में लगभग एक ही होता है |
यह शब्द संस्कृत के ‘नमस’ शब्द से निकला है। इसका अर्थ है, एक आत्मा का दूसरी आत्मा से आभार प्रकट करना। यदि इसे खंड में बदला जाये, जैसे ‘नमस्ते = नम: + ते’ यानी तुम्हारे लिए प्रणाम | और यदि आप जरा अपनी याददाश्त पर ज़ोर डालें, तो आपको याद आएगा कि यज्ञ में आहुति देते समय या कई तरह के मंत्रों को पढ़ते समय भी ‘नम:’ शब्द का प्रयोग किया जाता रहा है | जैसे,
‘ॐ सूर्याय नम:’ यानी सूर्य या सूरज के लिए प्रणाम है |
इसी प्रकार यहाँ- "तुम्हारे लिए प्रणाम है", के लिए युष्मद् (तुम) की चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है। वैसे "तुम्हारे लिए" के लिए संस्कृत का सामान्य प्रयोग "तुभ्यं" है, परन्तु उसी का वैकल्पिक, संक्षिप्त रूप "ते" भी बहुत प्रयुक्त होता है, यहाँ वही प्रयुक्त हुआ है। अतः नमस्ते का शाब्दिक अर्थ है- तुम्हारे लिए प्रणाम। इसे "तुमको प्रणाम" या "तुम्हें प्रणाम" भी कहा जा सकता है। परन्तु इसका संस्कृत रूप हमेशा ‘तुम्हारे लिए नमः’ ही रहता है, क्योंकि ‘नमः’ अव्यय के साथ हमेशा चतुर्थी विभक्ति आती है, ऐसा नियम है |
हालाँकि प्राचीन भारत की इस नमस्कार नामक अभिवादित विधि के कई वैज्ञानिक कारण भी हैं | जब हम दोनों हाथों को एक साथ जोड़ते हैं तो शरीर के बायीं ओर की ‘झड़ा’ नाड़ी और दायीं ओर की ‘पिंगला’ नाड़ी आपस में मिलती है | और दोनों आँखों के बीच और नाक के ठीक उपर, माथे पर (जहाँ अक्सर बिंदी लगाते हैं) जिसे ‘त्रिकुटी’ कहते है, में ‘शुष्मना’ नाड़ी सक्रीय हो जाती है | यदि हम हाथ जोड़ते समय अपने अंगूठों या उँगलियों
को त्रिकुटी पर मिलाएं, तो हमारे अंदर स्वयं ही दूसरे के प्रति श्रद्धा भाव आ जाता है और हमारा सिर खुद ही अगले व्यक्ति को आत्मा का स्वरूप मान कर झुक जाता है | लेकिन सबसे जरूरी जो क्रिया इस दौरान होती है, वह ये कि ‘शुष्मना’ नाड़ी हमारी छठी इंद्री (Sixth Sense) को भी जागृत कर देती है, जिसके फ़ायदे आप अच्छी तरह से जानते ही हैं |
दूसरे शब्दों में सुषुम्ना नाड़ी वह नाड़ी है, जो आत्मा (सः) रूप चेतन शक्ति को जीव रूप अहम् रूप में परिवर्तिन हेतु कुण्डलिनी-शक्ति रूप आत्मा से एक-दूसरे को मिलने का मार्ग प्रशस्त करते हुए दोनों को जोड़ती है।
सुषुम्ना नाड़ी की सांसारिक कोई उपयोगिता नहीं होती परन्तु (शिव और शक्ति से मिलने अर्थात्) इसके बिना योग की कोई क्रिया नहीं की जा सकती |
इसी तरह जब दोनों हाथ आपस में मिलते हैं तो एक्युप्रेशर ( Acupressure) विधि के हिसाब से हमारी कई उपयोगी
नाड़ियों पर दबाव पड़ता है, जो एक तरह से उनकी वर्जिश (Exercise) का काम करती है |
इसी तरह हमारी
पुरानी संस्कृति में हर छोटे से कार्य का होना भी हमारी भलाई को निहित करता है जिसका फायदा हमारे शरीर के साथ साथ हमारी आत्मा को भी होता है |
लेकिन जरूरत सिर्फ़ इस चीज़ की हम हर उस पहलू को पहले जाने, न की सिर्फ़ संस्कृति के
नाम पर अपने प्रियजनों और समाज पर थोप दें |
ब्रह्मांड
के ऐसे ही कई छोटे – बड़े व पुराने तथ्यों को आने वाली एक काल्पनिक उपन्यास
‘ग्रेवयार्ड हेडक्वार्टर’ (Graveyard Headquarter) में बहुत ही रोमांच ढंग से
पिरोया गया है |

Namaste. Commendable job by you. looking forward to your next post. :) :)
ReplyDeletenice blog for today's generation ...
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